Saturday, May 12, 2012

ऐसा वादा न कर मुझसे की तू निभा न सके, इतना दूर न जा की कभी मुझ पे हक़ जता न सके, गलत्फमियों से न लगा नफरत की आग, की चाह कर भी तू बुझा न सके, न खीच दिल के आईने पे कुछ ऐसी रेखाएं जो चेहरा बदल दे, की अपनी ही सूरत तू धडकनों को कभी दिखा न सके, न बांध ज़माने के रिश्तों में मासूम प्यार को तू आज, की कल खुदा सी मोहब्बत के जस्बातों को तू कुछ समझा न सके, है दम तेरी नफरत में तो छोड़ दे तस्बूर में भी मेरा ख्याल, कहीं ऐसा न हो एक पल के लिए भी तेरी साँसे मुझे भुला न सके, नामो निशा भी न छोड़ तू मेरी किसी निशानी का अपने पास, लेकिन वक़्त के हाथ तेरे चेहरे से मेरे प्यार का निशा मिटा न सके, सजा दिया नए रिश्तो की रौशनी ने मन तेरा जीवन, पर यादों के लम्हों की दाल से ये मेरा नाम हाथ न सके, इंसा से लेके खुदा तक सबने जिसे मिटाना चाहा ऐसी मोहब्बत को भुलाने के लिए हम खुद को मन न सके, न कर इतना शर्मिंदा मेरी मोहब्बत को आज, की कल तू इस इश्क को अपने दिलके महल में सजा न सके...

Saturday, October 10, 2009

मेरे दिल के कोने से............................

सृष्टि में जो कुछ सकून भरा है, प्रेम है । प्रेम ही है जो संबंधों को जीवित रखता है । परिवार के प्रति प्रेम जिम्मेदारी सिखाती है । प्रेम इन्सान को विनम्र बना देता है । प्रेम व्यक्ति विशेष के प्रति हो या इश्वेर के, आश्चर्यजनक रूप से उसकी सोच, उसका व्यवाहर , उसकी वाणी सब कुछ परिवर्तित हो जाता है।
प्यार जिन्दगी का सबसे हसीन जज्बा है, बोलने में जितना मीठा है, उसका एहसास उतना ही खुबसूरत और प्यारा है । इसे व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवयश्यकता नहीं होती । व्यक्ति की आँखें , चेहरा, हाव-भाव यहाँ तक की सांसें , दिल का सब भेद खोल देती है ।
प्रेम की दुनियाँ में खो कर कोई भी बाहर आना ही नहीं चाहता । वह जिसे प्यार करता है , खुली आंखों से भी उसी के सपने देखा करता है । उसके साथ बिताये समय को वो बार- बार याद करने की कोशिश करता है, और उस याद में ऐसा समां जाना चाहता है जैसे की दुनियाँ से उसको कोई मतलब ही नहीं है । उसके लिए सजना- सवरना चाहता है । औरों से बात करते वक्त भी उसी का जिक्र करना चाहता है । यही प्यार का दिवानापन है
प्रेम शाश्वत है , प्रेम सोच समझ कर की जाने वाली चीज़ नहीं है। कोई कितना भी सोचे , यदि उसे प्रेम हो गया है तो उसके लिए दुनियाँ कि हर एक चीज़ गौण हो जाती है । प्रेम कि अनुभूति बहुत हि आनंदमाय होता है । प्यार कब हो जाता है, पता ही नहीं चलता । इसका एहसास तो तब होता है जब मन सदेव किसी का सामीप्य चाहने लगता है। उसकी मुस्कराहट पर मन खिल उठता है , और उसके दर्द से तड़पने लगता है । उस पर सर्वश्व समर्पित करने को दिल करता है बिना किसी स्वार्थ के । सच्चा प्यार बदले में कुछ नहीं चाहता , बल्कि उसकी खुशियाँ के लिए बलिदान पर चढ़ जाता है। प्रिय कि निष्ठुरता भी उसे (प्रेम) कम नहीं कर सकती । वास्तव में प्रेम के पथ पर प्रेमी और प्रेमिका दो नहीं एक हुआ करते है । एक कि खुशी दुसरे के आँखों में छलकती है और दुसरे के दुःख से किसी कि आँखों भर आती है । प्रेम एक तपस्या है जिसमे मिलने कि खुशी , बिछड़ने का दुःख प्रेम का उन्माद , विरह का तप सब कुछ सहना होता है। प्रेम की प्राराकाष्ठा का एहसास तो तब होता है जब वह किसी से दूर हो जाता है। दुरी का दर्द मीठा होता है । कशक उठती है मन में बयां नही किया जा सकता । दुरी प्रेम को बढाती है और पुनर्मिलन का वह सुख देती है , जो अद्वतीय होती है। बिच्छोह का दुःख मिलने न मिलने की आशा - आशंका में जो सहमे व्यतीत होता है , वह जीवन का अमूल्य अंश होता है । उस तड़प का अपना एक अलग आनंद होता है । प्यार और दर्द में गहरा रिश्ता होता है , जिस दिल में दर्द ना हो उस दिल में प्यार का एहसास भी नही होता है। किसी के दूर जाने पर जो खालीपन (अकेलापन) लगता है, जो टीस दिल में उठती है, वही तो प्यार का दर्द है , इसी को तो लोग प्यार samajhte हैं .

Friday, October 2, 2009

क्या यही प्यार है ........................

क्यूँ प्यार उस पर ही आता है
जो मिल कर भी ना मिल पता है ?
कैसे ये उसे बताएं हम
तुझ बिन रह ना पायें हम ??
क्यूँ बार-बार वो सताता है
खुआबों में आकर रुलाता है ?
भुलाना उस को चाहे हम
पर किस तरह भुलाएँ हम ??
वो मन में हर दम रहता है ,
dharkan की तरह dharakta है
हैं इसी एहसास से जिन्दा हम
हैं एक-दूजे के दिल ओ जान हम
एक दूजे के दिल में रहते हैं
क्या प्यार इसी को कहते हैं ??
* * *